शव्वाल का महीना और शव्वाल के 6 रोज़े

शव्वाल इस्लामिक साल का दसवां महीना है और रमज़ान के बाद इस महीने की आमद होती है. इस महीने की कुछ खासियतों में से एक सबसे बड़ी खासियत ये है की शव्वाल की पहली तारिख को ही ईद मनाई जाती है. पहली शव्वाल को तुले-ए-आफताब के बाद थोड़ा ठहर कर ईद की नमाज़ पढ़ी जाती है.
इस तरह शव्वाल का महीने का आग़ाज़ खुशियों के साथ होता है.
शव्वाल के महीने की खास बातों में एक और खासियत है शव्वाल के 6 रोज़े.
रमज़ान के महीने का रोज़ा फ़र्ज़ है जो की हर मुसलमान को रखने हैं, शव्वाल का रोज़ा सुन्नत है .
अगर ईद के बाद शव्वाल के महीने में वो रोज़ेदार शव्वाल के 6 रोज़े भी रख ले तो फिर उसे पुरे साल रोज़ा रखने का अजर-ओ-सवाब मिलेगा.



जैसा के हदीस से साबित है,

अबु अय्यूब अल-अंसारी रजि० से रिवायत है के मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं:

"जिसने रमजान के पुरे रोज़े रखे और फिर शव्वाल के 6 रोज़े भी रखे तो उसने पुरे साल का रोज़ा रखा."
(सहीह मुस्लिम, हदीस नंबर 1164 , अबु दाऊद , हदीस 2433 , तिर्मिज़ी हदीस 759 , इबने माजा 1761)

इस हदीस से ज़ाहिर है के अगर रमज़ान के रोज़े पुरे किये हों और शव्वाल के ६ रोज़े भी रखें तो हमे पुरे साल रोज़ा रखने का सवाब हासिल होगा, शव्वाल के रोज़े के लिए कही ये शर्त नहीं है के शव्वाल के ६ रोज़े एक साथ रखने हैं या अलग अलग, इसलिए हम इसे एक साथ भी रख सकते हैं और चाहें तो अलग अलग भी रोज़े की गिनती पूरी कर सकते हैं. ये अपनी सहूलियत के मुताबिक कर सकते हैं.

कुछ लोग इस हदीस को "ता-उम्र के रोज़े का सवाब"  बयां करते हैं जिसका मतलब ये हरगिज़ नहीं के किसी साल में हमने रमज़ान के रोज़े पुरे किये और फिर शव्वाल के 6 रोज़े पुरे किये तो गोया हमने पूरी ज़िन्दगी रोज़ा रखा और फिर न भी रखें तो ज़िन्दगी भर का रोज़ा हो गया. ये गलत ख्याल है.
इसका मतलब सिर्फ यही है के अगर हमें फ़र्ज़ रोज़े के साथ शव्वाल के ६ सुन्नत हर साल रखते हैं और हमेशा रखेंगे तभी ता-उम्र रोज़े का सवाब होगा.

शव्वाल के महीने में कहीं कहीं ये बिदअत भी देखने को मिलती है के लोग ईद के दूसरे दिन से शव्वाल का रोज़ा रखते हैं और ६ रोज़े पुरे होने की ख़ुशी में भी ईद मनाते हैं जो की सरासर गलत है और बिदअत है. अल्लाह तआला ने बस २ ईद का तोहफा दिया है , ईद-उल-फ़ित्र और ईद-उल-अज़हा , फिर ये तीसरी शव्वाल की ईद कहा से आ गयी?
ये गलत है और हमे बिदअत और गुमराही से बचना चाहिए.
अल्लाह हम सबको क़ुरान-ओ- सुन्नत पे ज़िन्दगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता करे. (आमीन)

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