दो लफ्ज़

मेरे प्यारे भाइयों..
हम और आप मुसलमान हैं तो बेहतर होगा के हम और आप मुसलमान होने का हक़ भी अदा करें.
क्या सिर्फ ये कह देना काफी है के हम मुसलमान हैं और हम अल्लाह और उसके रसूल के मानने वाले हैं ?
नहीं, बल्कि इन अल्फ़ाज़ों के साथ साथ हमे इस पे पाबन्दी के साथ अमल करना भी ज़रूरी है. किस तरह का अमल ज़रूरी है एक ईमान वाला सच्चा मुसलमान बनने के लिए, और कौन सी बातें हैं जिनपे ध्यान देने ज़रूरी हैं.

जैसा के आज के हमारे मआशरे में हम देखते हैं के हमारे आसपास बहुत से मुसलमान हैं और वो भी हमारी तरह कलमा पढ़ने वाले हैं मगर उनके तौर तरीके,उनके इबादत का तरीका उनकी नमाज़ उनके अंदाज़, उनके जीने का सलीका सब एक दूजे से जुदा है, कोई सीने पे हाथ बांध कर नमाज़ पढता है तो कोई नियाज़ फातिहा को जायज़ समझता है...कोई मजारों पे मन्नत मांगने को जायज़ मानता है तो कोई शबे बराअत की बात पे बहस कर रहा है, कोई तरावीह में 20 रकत को सही मानता है तो कोई 8 रकत को..कोई वसीले में मुहम्मद सल० अलैहि० को ही वसीला बनाता है तो कोई इसे ग़लत मानता है... एक मौलवी दूसरे फ़िरक़े के मौलवी पे कीचड़ उछाल रहा है तो दूसरा पहले की खामियों को गिनाते हुए उसे गालियाँ दे रहा है.

क्या यही इस्लाम है और क्या क़ुरआन-ए-पाक से हमे यही सीखने को मिला, क्या अल्लाह के रसूल ने हमे यही तालीम दी है के हम ऐसे ही ज़िन्दगी गुज़ारें और एक दूसरे पे तोहमत लगाएं बजाये इसके के हम हक़ की तलाश करें.

अब सवाल ये दिमाग में आता है के फिर सही कौन है ?

जवाब बहुत सी सिंपल और आसान सा है ....... बस वही सही और कामयाब है जिसने किताबुल्लाह (क़ुरआन) पे भरोसा किया और जिसने मुहम्मदुर-रसूलल्लाह (सल० अलैहि०) की सुनातों पे अमल किया.
बहस अब यहाँ से शुरू होती है के सभी अपने आपको क़ुरआन-ओ-सुन्नत वाला ही बताते हैं कोई अपने को गलत मानने को तैयार नहीं है...मगर ये बात सही नहीं है क्यूंकि अगर सभी मुसलमान सही क़ुरआन और हदीस पे अमल करने वाले होते तो फिर एक दूसरे पे कीचड़ उछालने की नौबत ही नहीं आती.

अगर आप निचोड़ निकालें और खुद से क़ुरआन के मानी और तफ़्सीर का मुताला करें और सही हदीसों की जानकारी लेनी शुरू करें तो फिर आपको पता चलेगा के आपके मौलवी आपको कैसे बरगला रहे हैं और आपको कैसे इस्लाम की गलत जानकारी दे रहे हैं, क्यूंकि उन्हें पता है आज के ज़्यादातर इंसान शॉर्टकट ज़िन्दगी गुज़ारने के आदि हो चुके हैं और उन्हें नयी नयी चीज़ों से लगाव है, ये मौलवी मुल्लाओं को ही सबकुछ समझ बैठे हैं और उनकी जुबां से निकलने वाले अलफ़ाज़ को ही अपना मज़हब मान लेते हैं,क्यूंकि उन्हें लगता है केउनके ये मौलवी मुल्ला उन्हें जो सीखते हैं बस वही सही इस्लाम है बाकी सब बेकार है,

ऐसे शख्स के लिए वही मौलवी फिर सबकुछ बन जाता है उसी की इताअत करना (नउजुबिल्लाह) इनको अपनी कामयाबी का सबब लगता है, उनके हर अलफ़ाज़ इन्हे किताबुल्लाह और हदीसे रसूले पाक से भी ज़्यादा अज़ीज़ हो जाते हैं और फिर शुरू होती कट्टरता की लड़ाई और इन्हे अपना आप एक कट्टर मुस्लिम दीखता है और वो मौलवी इनका पीरो मुर्शिद जिसके अलफ़ाज़ पे जान गवां दें .

क्या ये सही है और क्या यही इस्लाम है?

नहीं.. ये इस्लाम हरगिज़ नहीं है. यही तो वो बातें हैं जहाँ से फ़िरक़े की शुरुआत होती है, जहाँ से हमारे ईमान का इम्तेहान होता है और तक़वे की पहचान यही से शुरू होती है. वजह बस वही के हमने क़ुरआन और हदीस को छोड़ कर मौलवी मुल्लवों और इस्लाम का कारोबार करने वाले झूटे लोगों की बातों पे ऐतबार करना शुरू कर दिया. अल्लाह तआला ने हमे सोचने समझने की सलाहियत अता की है, अल्लाह के रसूल ने हमे नसीहत की है के इल्म हासिल करने के लिए अगर सेहरा (रेगिस्तान) की ख़ाक छाननी पड़े तो छानो मगर तालीम हासिल करो. फिर हम इन झूटे लोगों की बातों पे क्यों ऐतबार कर बैठते हैं बजाये इसके के हम सही जानकारी लें सही लोगों से तालीम लें..क़ुरआन को समझ कर पढ़ें हदीस की तालीम लें  और खुद फैसला करें के सही क्या है और ग़लत क्या है...फिर यक़ीनन आप उस मकाम को पा लेंगे जो आपको रहे रास्त पे ले जाए.
इस वेबसाइट (ब्लॉग) का मक़सद ऐसे लोगों तक सही जानकारी पहुंचाना है जिन्हे इस्लाम की सही जानकारी नहीं है और जिन्हे मौलवी मुल्लाओं की बात ही क़ुरआन और हदीस के अलफ़ाज़ लगते हैं ..उन्हें क़ुरआन और हदीस के हवाले से सही रास्ता दिखाना ही हमारा मक़सद है ताकि सभी भटके हुए लोग रास्ते पे आ जाएँ और शिर्क-ओ बिदअत जैसी गुनाह से महफूज़ रहें.

अल्लाह तआला से दुआ है के हम सबको सही दीने इस्लाम पे चलने की तौफ़ीक़ अता करे और हमारे खताओं को माफ़ करे (आमीन)

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