तीन तलाक़ और हलाला

तीन तलाक़


इस्लामिक शरीयत के मुताबिक़ अगर शौहर अपनी बीवी से अलग होना चाहता है तो फिर उसे जिस इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ ये अमल करना है उसी अमल को तलाक़ कहते हैं.
शरीयत के मुताबिक़ तलाक़ के वक्त भी कुछ ख़ास हिदायतों का ख्याल रखना ज़रूरी है , मसलन हैज़ के दौरान औरत को तलाक़ नहीं देनी चाहिए, नशे की हालत में तलाक़ नहीं है , गुस्से की हालत में भी तलाक़ नहीं है.

तलाक़ लफ्ज़ कहने को बहुत ही छोटा है मगर इस लफ्ज़ से न जाने कई मुसलमानों ने अपने घर को बर्बाद कर लिया. तलाक़ जैसे मसले की सही जानकारी का ना होना भी कभी कभी इनकी खाना बर्बादी की वजह बनती है.

शरीयत के मुताबिक़ अहसन तरीक़ा ये है की अगर तीन तलाक़ एक ही वक्त यानी एक ही मजलिस में बोलें तो उसे एक ही तलाक़ माना जायेगा , यानी तीन तलाक़ एक ही दफा नहीं दी जा सकती हैं बल्कि शरीयतन एक तलाक़ के बाद इद्दत पूरी होने का इंतज़ार करना होगा जो की आम तौर पे तीन हैज़ का वक्त या तीन महीना है .
आइये तफ्सील से देखते हैं क़ुरआन और हदीस की सही रौशनी में की सही तलाक़ क्या है .



आम तौर पे हमारे मआशरे में तीन तलाक़ बोलने के बाद ये समझा जाता है की तलाक़ हो गयी और शौहर और बीवी अब अलग हो गए , वे अब अपने अपने घर अलग रह सकते हैं. मगर आइये देखते हैं क़ुरआन क्या कहता है.

"और तलाक़ वाली औरतें तीन हैज़ या तीन माह तक रुकी रहे. और उनके सिकम (पेट) में अल्लाह ने जो अता किया है उसे वो न छुपाएं अगर वो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखती हैं.और अगर वो सुलह सफाई चाहें तो उनके शौहरों को उस दौरान उन्हें वापस लेने का ज़्यादा हक़ है."
(सुरह बकरा आयत 228)

मतलब ये के शौहर अगर ये सोचे के हमने तलाक़ कह दिया अब उसका हमसे कोई वास्ता नहीं और उसे हमारे घर से चले जाना चाहिए तो ये ग़लत है क्यूंकि अगर शौहर ने उसे तलाक़ दिया है तो उस औरत का हक़ बनता है के वो तीन माह तक उसी घर में रहे और शौहर उसे वो सभी  चीज़ें मुहैया कराये जो जीने के लिए ज़रूरी हैं.
फिर अगर बीवी हामिला है तो उसे अपने शौहर से ये बात हरगिज़ नहीं छुपानी चाहिए. फिर अगर वो चाहें तो फिर (3 माह के अंदर ) सुलह कर सकते हैं .
यहां ये बात ग़ौर करने की है के अगर शौहर 3 महीने के अंदर बीवी से रुजूअ कर लेता है तो फिर इसमें कोई ऐतराज़ नहीं जैसा के अल्लाह तआला ने यहाँ पहले ही फरमा दिया है :

फिर अल्लाह फरमाता है:
"और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह फिर अपनी इद्दत पूरी कर लें तो उनके लिए अपने शौहरों से निकाह करने में रुकावट न डालो. जब वह आपस में दस्तूर के मुताबिक़ राज़ी हों....."
(सुरह बकरा, आयत 232)

यानी अगर तलाक़ शुदा इंसान चाहे तो फिर से अपनी तलाकशुदा बीवी से शादी कर सकता है जब के 3 माह की इद्दत गुज़र जाए , शर्त ये है के दस्तूर के मुताबिक़ फिर से नया निकाह और नयी मेहर के साथ.
तो क्या एक इंसान बार बार तलाक़ दे कर फिर इद्दत गुज़र जाने के बाद शादी कर सकता है?

नहीं,  क्यूंकि अल्लाह ताला फरमाता है:
"तलाक़ सिर्फ दो बार है. (यानी जब दो बार तलाक़ दे दी जाए तो ) फिर (औरतों को ) दस्तूर के मुताबिक़ रोक लो या नेक सुलूक से छोड़ दो....."
(सुरह बकरा, आयत 229)

यानी के अगर किसी शख्स ने अपनी बीवी को तलाक़ दिया फिर इद्दत गुज़र जाने के बाद शादी की ,मतलब उसने एक तलाक़ का इस्तेमाल कर लिया. फिर किसी वजह से आगे चलकर अगर उसने फिर अपनी उस बीवी को तलाक़ दे दी तो फिर ये दूसरी तलाक़ शुमार की जाएगी. फिर अभी भी वो इद्दत गुज़र जाने के बाद उस औरत से शादी कर सकता है उसी शर्त के साथ, यानी नया निकाह नयी मेहर.
फिर यहां अल्लाह तआला की तरफ से उस शख्स को नसीहत है के दस्तूर के मुताबिक़ उस औरत को रोक लो, क्यूंकि दो तलाक़ तक वो तुम्हारी है. अब अगर तुमने तीसरी तलाक़ दी तो फिर तुम्हे उस औरत को नेक सुलूक के साथ अब छोड़ देना होगा .

तो क्या फिर तीन तलाक़ के बाद वो शख्स फिर से उस औरत से शादी नहीं कर सकता?

हलाला


अल्लाह तआला फिर फरमाता है:

"फिर अगर वह उसको तलाक़ दे डाले ,तो उसके बाद वह (औरत ) उसके लिए हलाल न रहेगी जब तक वह उसके अलावा किसी शौहर से शादी न कर ले. फिर वह भी अगर उसे ( औरत को ) तलाक़ दे डाले तो फिर उन पे गुनाह नहीं के आपस में रुजूअ कर लें ......"
(सुरह बकरा, आयत 230)

अगर किसी शख्स ने अपनी बीवी को मुकम्मल तीन तलाक़ शरीयत के मुताबिक़ दे दिया है (यानी पहली तलाक़, फिर इद्दत पूरी होने पर निकाह, फिर दूसरी तलाक़ फिर उसकी इद्दत पूरी होने पर निकाह और फिर तीसरी और आखरी तलाक़ ) तो फिर उस शख्स के लिए वो औरत हलाल न रही.
अब अगर वो शख्स फिर से उस औरत से शादी करना चाहे तो फिर उसके लिए ये है के वो औरत अब किसी और शख्स से शादी कर ले फिर शरीयतन अगर वो शख्स उसे तलाक़ दे दे या फिर वो शख्स मर जाए , फिर वो पहला शख्स इस औरत से निकाह कर सकता है उसकी इद्दत पूरी हो जाने के बाद.
इस तरह वो औरत अब इस शख्स के लिए हलाल हो जाती है और इसी अम्ल को हलाला भी कहते हैं.

एक बात यहां ग़ौर करने वाली है.अगर तलाकशुदा औरत की शादी सिर्फ इस मक़सद के तहत की जाती है के फिर तलाक़ दे-ले कर अपने पहले शौहर से निकाह कर ले..... तो फिर ये सरासर ग़लत है और ये एक साजिश है. ऐसी साजिश करने वालों पर लानत है. इत्तेफ़ाक़न अगर ऐसा होता है के उसका शौहर उसे तलाक़ दे दे या फिर मर जाये, तो फिर कोई हर्ज़ नहीं.

यानी वो शख्स जो उस तलाक़शुदा औरत से शादी करे तो फिर इस इरादे से नहीं के हलाला के लिए निकाह करे और फिर प्लानिंग के तहत उसे कुछ दिनों बाद उसे तलाक़ दे दे. ऐसी साजिश करना ग़लत है और ऐसा करने वालों पर अल्लाह के रसूल ने लानत भेजा है.

अल्लाह हम सबको सही अम्ल करने की तौफ़ीक़ आता करे. (आमीन)

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