वसीला क्या है और दुआ के वक्त वसीला लेना कैसा है?
वसीला के मानी हैं अल्लाह से क़ुरबत तलाश करना.
वसीला के बारे में हदीस में भी ज़िक्र आया है. कई हदीसों में ऐसा ज़िक्र मिलता है के वसीला से दुआ मांगी गयी और दुआ क़ुबूल भी हुई.
(पढ़ें - पैग़म्बर और औलिया के वसीले से दुआ मांगना)
अब सवाल ये उठता है के वसीला के तौर पे हम क्या कहें या किसको अपना वसीला बनायें. इस सवाल का जवाब देने के पहले आइये वसीला की किस्मों पे ग़ौर करते हैं.
वसीला की हदीसों और क़ुरआन की आयतों पे ग़ौर करने पर वसीले की दो किस्में समझ आती हैं:
1. सही/जायज़ वसीला
2. ग़लत/नाजायज़ वसीला
सही वसीला वो है के जिसके लिए अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद ﷺ ने कभी हुक्म दिया हो, या कभी मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ के फेल से ये ज़ाहिर हो, या कभी रसूले पाक ने कभी इसका ज़िक्र किया हो. मिसाल के तौर पे जायज़ वसीला के तरीकों को निचे बयां किया गया है.
A. अल्लाह तआला को उनके ख़ूबसूरत नामों से मुखातिब करते हुए उनकी तारीफ करना और फिर दुआ करना.
क़ुरआन पाक में आता है के
"और अल्लाह के सब नाम अच्छे ही अच्छे हैं , तो उसको उसके नामों से पुकारा करो..."
(सूरह 7 अल आराफ, आयत 180)
B. यकीन और सच्चाई के साथ अलल्ह की वहदानियत का इक़रार और दुआ के क़ुबूल हो जाने का यकीन के साथ दुआ करना.
जैसा के क़ुरआन में इस दुआ का ज़िक्र है
"या अल्लाह, हम ईमान ले आये, सो हमको हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा और दोज़ख के अज़ाब से महफूज़ रख "
(सूरह 3 आले इमरान, आयत 16 )
C. अपने अच्छे आमाल, जैसे नमाज़, रोज़ा, क़ुरआन की तिलावत, ज़रूरतमंदों की मदद, अमानत की हिफाज़त वगैरह के वसीले से दुआ करना...
एक हदीस में है के तीन आदमी एक गुफा के अंदर जाते हैं मगर एक बड़ा चट्टान मुहाने पे आ जाता है और वो अंदर क़ैद हो जाते हैं. फिर तीनों बारी बारी अपने अच्छे आमाल को वसीला बना कर दुआ करते हैं और चट्टान अपनी जगह से है जाता है और फिर वो सभी बहार आ जाते हैं.
(सहीह बुखारी, हदीस नंबर 2272)
D. दुआ के दौरान पैगम्बर मुहम्मद ﷺ पे दुरुद भेज कर दुआ के क़ुबूल हो जाने की इल्तिजा करना
अल्लाह के रसूल पे दुरूद भेजना भी एक अच्छा वसीला है जिसकी वजह से अल्लाह दुआ क़ुबूल करता है. इसकी दलील भी हमे हदीस से मिलती है.
हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रजि० से रिवायत है के मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया "दुआ आसमान और ज़मीन के बीच में ही रुका रहता है जब तक के नबी-ए-करीम ﷺ पे दुरूद न भेजी जाये "
(तिर्मिज़ी, हदीस नंबर 486)
E. किसी नेक और सालेह इंसान (जो ज़िंदा हो) को वसीला बना कर अपने लिए दुआ करवाना
क़ुरआन की आयतों से और बहुत सारी हदीसों से भी इस बात का सुबूत मिलता है के नेक और सालेह इंसान (जो उस वक्त मौजूद और ज़िंदा थे) को वसीला बना कर उस से अपने लिए दुआ कराया गया.
यहाँ ध्यान रहे के जिसके वसीले से दुआ की जाये वो मौजूद हो न के वफ़ात पाया हुआ , साथ ही अल्लाह से दुआ करनी है उसके मख्लूक़ से नहीं क्यूंकि ये शिर्क है और अल्लाह शिर्क को माफ़ नहीं करेगा.
अपनी हाजतें पूरी कराने के लिए लोग ऐसी चीज़ों को भी वसीला बना लेते हैं जो अल्लाह के नज़दीक नापसंदीदा है और जिसका ज़िकर अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ की किसी भी हदीस से नहीं मिलता और न ही सहाबा और ताबेईन के किसी फेल से इसकी कोई दलील मौजूद है. मसलन किसी पैगम्बर का वसीला, किसी पीर या औलिया का वसीला जो वफ़ात प चुके हैं, इनका वसीला बिलकुल जायज़ नहीं है
इस तरह का वसीला कतई जायज़ नहीं है क्यूंकि अल्लाह के अलावा किसी से भी इस यकीन के साथ मांगना के वो क़ादिर है और अता करने की सलाहियत रखता है, सरासर ग़लत है और शिर्क है जिसे अल्लाह मुआफ नहीं करेगा.
अगर अल्लाह हमे खुद से मांगने की नसीहत करता है तो फिर हम अपनी दुआओं के लिए किसी और को शरीक क्यों बनायें
अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाता है
"तुम मुझ से दुआ करो मैं तुम्हारी दुआ क़ुबूल करूँगा"
(सूरह 40 गाफिर, आयत 60 )
फिर एक जगह हिदायत देते हुए फरमाता है के
"जब कोई पुकारने वाला मुझे पुकारता है तो मैं उसकी दुआ क़ुबूल करता हूँ, तो उनको चाहिए के मेरे हुक्मों को मानें और मुझ पर ईमान लाएं ताकि नेक रास्ता पाएं"
(सूरह २ बकरा, आयत 186)
जब हम सूरह फातिहा पढ़ते हैं तो हम इस बात का इक़रार कर रहे होते हैं के
"ऐ परवरदिगार, हम तेरी इबादत करते हैं और तुझसे ही मदद मांगते हैं "
(सूरह फातिहा, आयत 4)
अल्लाह का कलाम हमे हर जगह पे हिदायत कर रहा के हमे सिर्फ अल्लाह से ही मांगनी चाहिए .
इसलिए हमे इस बात का ख्याल रखना होगा के दवा सिर्फ अल्लाह ही क़ुबूल करता है और दुआओं के क़ुबूलियत के लिए अगर वसीला लेना ही है तो ज़िंदा लोगों का वसीला लेंगे न के क़ब्र वालों का.
(ये भी पढ़ें - पैग़म्बर और औलिया के वसीले से दुआ मांगना)
अल्लाह हम सबको क़ुरान-ओ- सुन्नत पे ज़िन्दगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता करे. (आमीन)
वसीला के मानी हैं अल्लाह से क़ुरबत तलाश करना.
वसीला के बारे में हदीस में भी ज़िक्र आया है. कई हदीसों में ऐसा ज़िक्र मिलता है के वसीला से दुआ मांगी गयी और दुआ क़ुबूल भी हुई.
(पढ़ें - पैग़म्बर और औलिया के वसीले से दुआ मांगना)
अब सवाल ये उठता है के वसीला के तौर पे हम क्या कहें या किसको अपना वसीला बनायें. इस सवाल का जवाब देने के पहले आइये वसीला की किस्मों पे ग़ौर करते हैं.
वसीला की हदीसों और क़ुरआन की आयतों पे ग़ौर करने पर वसीले की दो किस्में समझ आती हैं:
1. सही/जायज़ वसीला
2. ग़लत/नाजायज़ वसीला
सही या जायज़ वसीला
सही वसीला वो है के जिसके लिए अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद ﷺ ने कभी हुक्म दिया हो, या कभी मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ के फेल से ये ज़ाहिर हो, या कभी रसूले पाक ने कभी इसका ज़िक्र किया हो. मिसाल के तौर पे जायज़ वसीला के तरीकों को निचे बयां किया गया है.
A. अल्लाह तआला को उनके ख़ूबसूरत नामों से मुखातिब करते हुए उनकी तारीफ करना और फिर दुआ करना.
क़ुरआन पाक में आता है के
"और अल्लाह के सब नाम अच्छे ही अच्छे हैं , तो उसको उसके नामों से पुकारा करो..."
(सूरह 7 अल आराफ, आयत 180)
B. यकीन और सच्चाई के साथ अलल्ह की वहदानियत का इक़रार और दुआ के क़ुबूल हो जाने का यकीन के साथ दुआ करना.
जैसा के क़ुरआन में इस दुआ का ज़िक्र है
"या अल्लाह, हम ईमान ले आये, सो हमको हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा और दोज़ख के अज़ाब से महफूज़ रख "
(सूरह 3 आले इमरान, आयत 16 )
C. अपने अच्छे आमाल, जैसे नमाज़, रोज़ा, क़ुरआन की तिलावत, ज़रूरतमंदों की मदद, अमानत की हिफाज़त वगैरह के वसीले से दुआ करना...
एक हदीस में है के तीन आदमी एक गुफा के अंदर जाते हैं मगर एक बड़ा चट्टान मुहाने पे आ जाता है और वो अंदर क़ैद हो जाते हैं. फिर तीनों बारी बारी अपने अच्छे आमाल को वसीला बना कर दुआ करते हैं और चट्टान अपनी जगह से है जाता है और फिर वो सभी बहार आ जाते हैं.
(सहीह बुखारी, हदीस नंबर 2272)
D. दुआ के दौरान पैगम्बर मुहम्मद ﷺ पे दुरुद भेज कर दुआ के क़ुबूल हो जाने की इल्तिजा करना
अल्लाह के रसूल पे दुरूद भेजना भी एक अच्छा वसीला है जिसकी वजह से अल्लाह दुआ क़ुबूल करता है. इसकी दलील भी हमे हदीस से मिलती है.
हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रजि० से रिवायत है के मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया "दुआ आसमान और ज़मीन के बीच में ही रुका रहता है जब तक के नबी-ए-करीम ﷺ पे दुरूद न भेजी जाये "
(तिर्मिज़ी, हदीस नंबर 486)
E. किसी नेक और सालेह इंसान (जो ज़िंदा हो) को वसीला बना कर अपने लिए दुआ करवाना
क़ुरआन की आयतों से और बहुत सारी हदीसों से भी इस बात का सुबूत मिलता है के नेक और सालेह इंसान (जो उस वक्त मौजूद और ज़िंदा थे) को वसीला बना कर उस से अपने लिए दुआ कराया गया.
यहाँ ध्यान रहे के जिसके वसीले से दुआ की जाये वो मौजूद हो न के वफ़ात पाया हुआ , साथ ही अल्लाह से दुआ करनी है उसके मख्लूक़ से नहीं क्यूंकि ये शिर्क है और अल्लाह शिर्क को माफ़ नहीं करेगा.
ग़लत/नाजायज़ वसीला
इस तरह का वसीला कतई जायज़ नहीं है क्यूंकि अल्लाह के अलावा किसी से भी इस यकीन के साथ मांगना के वो क़ादिर है और अता करने की सलाहियत रखता है, सरासर ग़लत है और शिर्क है जिसे अल्लाह मुआफ नहीं करेगा.
अगर अल्लाह हमे खुद से मांगने की नसीहत करता है तो फिर हम अपनी दुआओं के लिए किसी और को शरीक क्यों बनायें
अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाता है
"तुम मुझ से दुआ करो मैं तुम्हारी दुआ क़ुबूल करूँगा"
(सूरह 40 गाफिर, आयत 60 )
फिर एक जगह हिदायत देते हुए फरमाता है के
"जब कोई पुकारने वाला मुझे पुकारता है तो मैं उसकी दुआ क़ुबूल करता हूँ, तो उनको चाहिए के मेरे हुक्मों को मानें और मुझ पर ईमान लाएं ताकि नेक रास्ता पाएं"
(सूरह २ बकरा, आयत 186)
जब हम सूरह फातिहा पढ़ते हैं तो हम इस बात का इक़रार कर रहे होते हैं के
"ऐ परवरदिगार, हम तेरी इबादत करते हैं और तुझसे ही मदद मांगते हैं "
(सूरह फातिहा, आयत 4)
अल्लाह का कलाम हमे हर जगह पे हिदायत कर रहा के हमे सिर्फ अल्लाह से ही मांगनी चाहिए .
इसलिए हमे इस बात का ख्याल रखना होगा के दवा सिर्फ अल्लाह ही क़ुबूल करता है और दुआओं के क़ुबूलियत के लिए अगर वसीला लेना ही है तो ज़िंदा लोगों का वसीला लेंगे न के क़ब्र वालों का.
(ये भी पढ़ें - पैग़म्बर और औलिया के वसीले से दुआ मांगना)
अल्लाह हम सबको क़ुरान-ओ- सुन्नत पे ज़िन्दगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता करे. (आमीन)
Sab to sahi hau
ReplyDeleteVery good bilkul sahy kaha ho inko na many vo jahannum k kutty hongy q ki naby & Kuran ki n Manny vala kafir hy
ReplyDeleteJinda ka waseela bana sakte hai magar wafaat shuda ka waseela nahi bana sakte
ReplyDeleteYeh wahabi najdiyo ka kahna hai halanki yeh kisi hadith se sabit nahi.
तो भाई बता दे किसी वफात पाए को वसीला बनाने की दलील
DeleteShabir Rather ALLAHﷻ Ki Qudrat Hai Ke Woh Bina Waseele Ke Bhi Ata Kar Sakta Hai Lekin ALLAHﷻ Qanoon Hai Ke Waseele Ke Zariye Se Hi Ata Karta Hai.
DeleteSureh Maa’idah Ayat No.35
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰہَ وَ ابۡتَغُوۡۤا اِلَیۡہِ الۡوَسِیۡلَۃَ وَ جَاہِدُوۡا فِیۡ سَبِیۡلِہٖ لَعَلَّکُمۡ تُفۡلِحُوۡنَ ﴿۳۵﴾اے ایمان والو اللہ سے ڈرو اور اس کی طرف وسیلہ ڈھونڈو اور اس کی راہ میں جہاد کرو اس امید پر کہ فلاح پاؤ ۔
Kanzul Iman Translation
Aye Imaan Waalo Allah Se Daro Aur Uski Taraf Waseela Dhoo’ndo Aur Uski Raah Me’n Jihaad Karo Iss Ummeed Par Ke Falaah Paao.
Allah ke wali jinda hote hai isliye unka wasila le sakte h.
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