ज़ुल-हिज्जा इस्लामिक साल का आखरी महीना है और ये हुरमत वाले महीनों में से है.
अल्लाह तबारक व-तआला ने चार महीनों को हुरमत वाला महीना बनाया है जो की
1. ज़ुल-क़ादा
2. ज़ुल-हिज्जा
3. मुहर्रम और
4. रजब है.
(अबु दाऊद , हदीस 1947)
ज़ुल-हिज्जा महीने की दसवीं तारिख को यानी दस ज़ुल-हिज्जा को ईद मनाई जाती है जिसे हम ईद-उल-अज़हा कहते हैं और ये ईद तीन दिनों तक के लिए होती है.
इस महीने के आमाल बाकी महीने में किये गए आमाल से ज़्यादा अफ़ज़ल हैं. इस महीने के बारे में अल्लाह के रसूल ﷺ का फरमान है के इस महीने में जो नेकियाँ होती हैं वो कभी घटाई नहीं जाती.
अब्दुर-रहमान बिन अबूबकर से रिवायत है के उन्होंने अपने वालिद से सुना था के, मुहम्मद ﷺने फ़रमाया
"ईद के दो महीने ऐसे हैं के जिनमे नेकियाँ कम नहीं की जाती हैं ,और वो दो महीने हैं -रमज़ान और ज़ुल-हिज्जा"
(इब्ने माजा , हदीस 1659)
इस महीने के दस दिनों के इबादत की बड़ी फ़ज़ीलत है. जैसा के फ़ज़ीलत बयां करते हुए अल्लाह के रसूल ﷺ फरमाते हैं:
अल्लाह के यहां और किसी दिन की इबादत इतनी पसंदीदः और अफ़ज़ल नहीं है जितनी के ज़ुल-हिज्जा के पहले अशरे (महीने के पहले दस दिन) की इबादत. इन दिनों में रोज़ रखने का सवाब ऐसा है के अगर किसी ने एक दिन रोज़ा रखा गोया के उसने एक साल तक रोज़ा रखा और जिसने इन रातों में इबादत की गोया के उसने लैलतुल-क़द्र में इबादत किया.
(तिर्मिज़ी, हदीस नंबर-758 इबने मजा हदीस नंबर-1728)
इसलिए अल्लाह के रसूल ज़ुल-हिज्जा के पहले अशरे में 9 दिनों तक रोज़ा रखते थे जैसा के हदीस में रिवायत है:
मुहमदुर रसूलल्लाह ज़ुल-हिज्जा के शुरू के नौ दिनों का रोज़ रखते थे और मुहर्रम की दसवीं (यौमे आशूरा) को रोज़ रखते और हर महीने में तीन दिन रोज़ रखते थे यानी महीने के पहले पीर और जुमेरात का रोज़ रखते थे.
(अबु दाऊद, हदीस नंबर-2437)
अल्लाह के रसूल ﷺ ने इस महीने की फ़ज़ीलत बयान करते हुए फ़रमाया के अल्लाह को इन दस दिनों की इबादत से ज़्यादा महबूब किसी और दिन की इबादत नहीं है . पूछा गया , क्या अल्लाह के राह में जिहाद करना भी ? आप ﷺ ने फ़रमाया हाँ अल्लाह की राह में जिहाद करना भी, अगरचे कोई शख्स इस तरह जाये के वो अपने साथ अपनी दौलत भी लेता जाये और फिर उनमे से कुछ भी लौट के ना आये.
(सुनन इबने मजा, हदीस नंबर 1727)
ज़ुल-हिज्जा की नौवीं तारीख को यौमे-अरफा भी बोलते हैं और इस दिन के रोज़े की खास फ़ज़ीलत है. अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया के जो शख्स इस दिन (यौमे अरफा) रोज़ा रखता है उसके पिछले एक साल के और आने वाले एक साल के गुनाह मुआफ़ कर दिए जाते हैं, यानी ये एक दिन का रोज़ा गुज़स्ता और आइंदा साल का कफ़्फ़ारा है.
(सही मुस्लिम, हदीस नंबर 1162)
नोट: हज के दौरान हाजियों को अरफा के दिन (नवीं ज़ुल-हिज्जा को) रोज़ा नहीं रखने का हुक्म है. इस दिन वो अराफात में होते हैं..
(सहीह बुखारी, हदीस-1658,1989,5618, इबने माजा, हदीस-1732, तिर्मिज़ी, हदीस- 750)
ज़ुल-हिज्जा के दसवीं तारीख को बहुत से लोग अल्लाह की राह में जानवरों की क़ुरबानी कराते हैं.
अल्लाह के रसूल ﷺ का फरमान है के जो शख्स ज़ुल-हिज्जा के महीने में ईद-उल-अज़हा के मौक़े पे अल्लाह की राह में क़ुरबानी करना चाहे उसे चाहिए के वो ज़ुल-हिज्जा का नया चाँद देखने के बाद क़ुरबानी करने तक अपने बाल या नाख़ून में से किसी को भी न काटे.
(सुनन निसाई, हदीस-4361, इबने मजा हदीस-3149,3150, रियाज़ुस-सालेहीन-196)
ज़ुल-हिज्जा के 11 वीं , 12 वीं और 13 वीं तारिख (जो की मीना का दिन है और जिसे तशरीक़ भी बोलते हैं ) को अल्लाह के रसूल ने खाने पीने वाला दिन बताया है यानी इन दिनों में रोज़ नहीं रखनी चाहिए.
(सहीह इबने माजा, हदीस-1719,1720)
No comments:
Post a Comment