तफ्सील के लिए देखें : शबे मेराज की हकीकत (इसरा और मेराज का बयान)
मेराज के इस वाक़ये को ले कर हमारे समाज में कुछ बिदअतें फैली हुई हैं और कुछ मुल्लाओं ने लोगों के दिलों में बहुत सी अफवाहें भी भर रखी हैं जिनका ज़िक्र यह किया जायेगा.
सबसे पहले हम इसकी तारिख पर ग़ौर करेंगे.
आप ﷺ की बीवी हज़रते खदीजा रज़ि० जब बा-हयात थीं तो उस वक़्त तक आप ﷺ के उम्मत पर पाँच वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ न हुई थी. और खदीजा रज़ि० की वफ़ात नुबूवत के दसवें साल हुई. उसके कुछ वक्त बाद ही नमाज़ें फ़र्ज़ हुईं. इस से आलिमों में ये इत्तेफ़ाक़ है के साल के ऐतबार से मुहम्मदुर रसूलल्लाह ﷺ को मेराज नुम्बुवात के दसवें साल हुआ.
अब इस बात पे की मेराज वाला महीना कौन सा था या इसकी सही तारीख क्या है, दिन कौन सा था...............इस के बारे में उलेमा का इख़्तेलाफ़ है.
इस रात के बारे में इब्ने हजर असक़लानी ने फत्हुल-बारी में कई उलेमा का क़ौल बयान किया है और कहते हैं के इसकी तारीख के सिलसिले में उलेमा का इत्तेफ़ाक़ नहीं है.
इब्ने हजर कहते हैं के वाकिदी, इब्ने क़ुतैबा और इब्ने अब्दुल बर का ये मानना है के ये वाकिया रबीउल अव्वल के महीने में पेश आया
इब्राहिम अल-हरबी का मानना है के ये वाक़या रबीउल सानी में हुआ.
इब्ने हजम, इब्ने अब्दुल बर और इमाम नववी का ये भी मानना है के ये रजब के महीने का वाकिया हो.
इब्ने जरीर अल-तबरी और इमाम बैहक़ी कहते हैं के ये सव्वाल के महीने में हुआ.
एक और आलिम इब्ने अबी सबराह का कहना है के ये रमज़ान में पेश आया.
मतलब ये के सही तारीख पे उलेमा किराम में इत्तेफ़ाक़ नहीं है.
इब्न अल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह अपनी मशहूर किताब ज़ादुल-माद में लिखते हैं हैं के मेराज के बारे में ये हरगिज़ हरगिज़ मालूम नहीं के ये वाकिया कौन से महीने में , या कौन सी तारीख को या कौन से असरे में मेराज हुआ.
इन तमाम बातों से एक बात साफ़ ज़ाहिर होती है के महीने, दिन और असरे के ऐबार से कोई जानकारी नहीं है.
फिर 27 रजब को शबे मेराज मनाना कहाँ तक सही है?
ये बिलकुल भी दुरुस्त नहीं है के इन पुराने और बेहद जानकार, तारीख के माहिर और इस्लाम को गहराई तक जाने वालों ने जब कोई तारीख नहीं बताई, कोई सही महीना नहीं बताया, फिर ये आज-कल के कुछ मुल्लाओं ने कैसे इसे एक तारीख दे दिया. अगर सिर्फ तारीख तक रखते तो फिर भी गनीमत थी के चलो तारीख ही तो है...मगर इसे बाक़ायदा एहतिमाम के साथ मनाया जाने लगा और इस रात को इबादत के लिए खास बना दिया गया और इस तरह इस्लाम में एक नए बिदअत का आगाज़ कर दिया गया.
इस रात को "खास" बनाने वालों ने ये भी ना सोचा के क्या मुहम्मदुर रसूलल्लाह ﷺ ने कभी इस रात को जश्न मनाने या इस रात को खास बना कर इबादत करने या इस रात की अफ़ज़लियत वगैरह का कही ज़िक्र किया के हर साल ये रात खास होगी और इसका एहतिमाम किया जाना चाहिए??
अगर यह थोड़ी सी अक़्ल का भी इस्तेमाल किया जाए तो बिलकुल ही पता चल जाये के अगर इस तारीख को इबादत के लिए खास बनाया गया होता या इस तारिख में आप ﷺ या आपके सहाबा रज़ि० या तब-ताबईन ने कोई खास एहतिमाम किया होता तो ये सिलसिला चलता ही रहता और सबको इसकी तारिख याद रहती......और सिलसिला दर-सिलसिला इस खास रात की इबादत का एहतमाम होता ही रहता और सबको तारिख याद करने की या बहस की भी ज़रूरत नहीं पड़ती और भी सबको इस तारिख पे इत्तेफ़ाक़ भी होता.......मगर हमारे उलेमा की क़दीम किताबों और तफ़सीरों में भी इस तारीख पर इत्तेफ़ाक़ ना होना इस बात की दलील है के न तो इस रात को उस वक्त खास बनाया गया गया था और ना ही 27 रजब की कोई खास अहमियत है...बल्कि इसकी रात भी आम रातों की तरह है.
इसलिए 27 रजब को ये समझना के ये शबे मेराज है और इसका खास एहतिमाम करना और इबादत के लिए मख़सूस कर लेना सरासर ग़लत है बिदअत है.
सही हदीस की किताब में अगरचे इसरा और मेराज का ज़िक्र है मगर कही भी तारिख का ज़िक्र नहीं या कही भी इसको खास बना कर इस रात के एहतमाम का ज़िक्र नहीं मिलता ..... चाहे वो सही बुखारी हो या सही मुस्लिम या सुनन अरबा की हदीस... किसी भी हदीस में इस रात की अहमियत और तारीख का ज़िक्र नहीं है.
इस रात की दलील के के लिए कुछ जदीद मौलवियों की किताब का सहारा लिया जाता है. क्या ये नए ज़माने के मौलवी उन पुराने ज़माने के आलिमों और मुहद्देसीनो से भी तहक़ीक़ में आगे निकल गए जिन्होंने इस्लामी तारीख की तह तक गए ताकि उन्हें सही बातें सही हदीस माख़ूज़ हो सकें सही बात का पता चले और क़ुरआन की सही तफ़्सीर हो सके वगैरह....
क़दीम किताबों, हदीसों और तफ़सीरों में इस वाक़ये की तारीख का इल्म न होना इस बात दलील है के ये 27 रजब को कोई खास अहमियत नहीं है और न ही इसे कभी उस ज़माने में सेलिब्रेट किया गया था. इसलिए इस रात का खास एहतिमाम और इबादत सिर्फ और सिर्फ बिदअत है.
क्या मुहम्मदुर रसूलल्लाह ﷺ ने मेराज में अल्लाह को देखा था?
कुछ मौलवी इस बात पे भी जिरह करते हैं के आप ﷺ ने अपने रब को देखा है और ये वाकिया भी मेराज में हुआ.
इस बात का ज़िक्र किसी भी हदीस में नहीं है के आपने अल्लाह को देखा या मेराज के दौरान अल्लाह ने आपके सामने खुद को ज़ाहिर किया. अगर ऐसा कुछ हुआ होता तो यक़ीनन इसका ज़िक्र क़ुरआन और हदीस में मौजूद होता, मगर ऐसी कोई बात नहीं है. जिस से ज़ाहिर है कुछ मौलवियों ने अपनी तरफ से ये बोहतान बाँधा है.
हज़रते आयशा रज़ि० फरमाती हैं "जो शख्स तुमसे ये कहे के रसूलल्लाह ﷺ ने अपने रब को देखा है तो वह झूठा है"
(सहीह बुखारी, हदीस नंबर-4855, सही मुस्लिम , हदीस नंबर-177)
इस हदीस को झुट्लाते हुए कुछ मुल्ला ये बात अक्सर तक़रीरों में कह जाते हैं के आप ﷺ ने अपने रब मेराज में देखा था जो की सही नहीं है.
इस तरह ये भी साबित होता है के नबी-ए-करीम का अपने रब को देखने वाली बात भी झूटी है.
क्या नबी आलिमुल ग़ैब हैं?
मेराज के वाक़ये पर ग़ौर करें तो ये बात भी ज़ाहिर हो जाती है के आपको ग़ैब का इल्म नहीं था क्योंके जब जिब्राइल आपको मेराज के वक्त ले के जा रहे थे तो आप ने उनसे बहुत से लोगों और चीज़ों के बारे में आप ﷺ ने सवाल किया क्योंके उन्हें पता नहीं था. मसलन, आपने हर आसमान पे अम्बिया के बारे में पूछा के वो कौन हैं, आपने सिदरतुल मुन्तहा पे भी सवाल किया ये क्या है, जन्नत आउट जहन्नम देखते वक्त भी आपने सवाल किया ये शख्श कौन है क्यों सजा दी जा रही वगैरह वगैरह...
इन बातों पे अगर ग़ौर करें तो बिलकुल साफ़ ज़ाहिर हो जाता है के आप ﷺ आलिमुल ग़ैब नहीं थे....आपको बिलकुल भी ग़ैब का इल्म नहीं था हाँ मगर जितना अल्लाह तआला आपको बताते बस उतना ही.
क्या रसूलल्लाह ﷺ हर जगह हाज़िर-ओ-नाज़िर हैं?
कुछ लोगों का ये अक़ीदा है के मुहम्मद ﷺ हर जगह हर वक्त हाज़िर-ओ-नाज़िर हैं.
मेराज के वाक़ये पे ही अगर ग़ौर करें तो हमे इसका भी जवाब मिल जायेगा. जब जिब्राइल अलैहिस्सलाम उनके पास इसरा के सफर के लिए तो आप ﷺ को सवारी के लिए बुर्राक़ दिया. अगर आप हर जगह हाज़िर-ओ-नाज़िर होते तो फिर आपको सवारी की क्या ज़रूरत? आप जैसे मस्जिदे हराम में मौजूद थे वैसे मस्जिदे अक़्सा में भी मौजूद होते, फिर अल्लाह ने आपके पास सवारी क्यों भेजा के आप उसपर सवार हो कर मस्जिदे अक़सा को जाएँ?
इसी तरह जब आपको जिब्राइल एक आसमान से दूसरे आसमान पे जाते तो फिर बाकी आसमानों पे यकवक़्त क्योंकि नहीं मौजूद रहते जब आप ﷺ हर जगह हाज़िर थे. आखिर क्यों बार बार आपको सिदरतुल मुन्तहा को वापिस जाना पड़ा जब नमाज़ की तादाद काम करनी थी? आप तो हर जगह हाज़िर-ओ-नाज़िर थे?? (नऊज़ुबिल्लाह )
इसलिए ये अक़ीदा रखना के अल्लाह के रसूल ﷺ हर जगह हाज़िर-ओ-नाज़िर थे, सरासर ग़लत है और उनपे बोहतान बाँधना है.
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सबको किताबुल्लाह और सुन्नते नबवी के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुजरने की तौफ़ीक़ अत फरमाये (आमीन)
आमीन
ReplyDelete.......عقل لگانے کا وہ بھی نبی کی زات پر
ReplyDeleteआमीन
ReplyDeleteBilkul sahi post hai bhai
ReplyDeleteBarelvi to yahan tak kahte hain
Jab rasool swl ne meraj mein parda hataaya to dekha ke wo khud wahan baithe hain.
Ye logo ka kahna hai Allah khud avtaar le k aaye they rasool swl ka..
Aur jisko lage aisa nahi hai
Main jhuth bol raha hu to main saboot dunga usko wts app pe msg kar dena mere 6387370682
Mere ko kuchh bate sahi nahi lagi agar nabi ko ilme gaib nahi tha jo log kahte hai Mai under ek bat kaha chahunga nabi ki laying hui koi cheer pe amal na kare AUR khud KHUDA se kaha batao ham Kya kare Islam ki jankari kaha se military nabi se tune Islam kaha se jana nabi se tum aye kaha se direct KHUDA se nahi aye na ma bap na hotel tum ajate nahi na jab ma bap ko ilme gaib tha ki hazard beta ya beti paida hoga nabi ko kyun kaha ilme gaib nahi tha agar nabi ko ilme gaib nahi tha to tum sidhe Allah ki bat mano jab ki allah ke bare me kidney bataya nabi ne nabi na ate to tum aj bhi puja karte hote Sayed Irshad Ali 9455561043
ReplyDeleteमस्लके आलाहजरत ज़िंदाबाद - MASLAKE AALAHAZART ZINDABAAD - مسلک اعلٰیحضرت زنداباد
DeleteHamare liye rasool khuda se kam nahi hai
ReplyDeleteLa Ilaha Illallah Muhammad rasulullah
Bhai kufr ke kalimat kahe hai aapne apna aqeeda mat khrab kro bhai
DeleteNabi ko ilme gaib taha Hazir nazir bhi aur Allah ko dekhe bhi hai jisko daleel chaiye phone kare mujhe
ReplyDelete6203805626
Huzoor saw ko ilme gaib hai wo jante hai sab kuch or aap saw ne Allah taala ka deedar bhi kiya hai aap kaise keh sakte hai ki ye sab jhoot hai are aapke saboot kya hai
ReplyDeleteमस्लके आलाहजरत ज़िंदाबाद - MASLAKE AALAHAZART ZINDABAAD - مسلک اعلٰیحضرت زنداباد
DeleteHuzoor saw ko ilme gaib hai wo jante hai sab kuch or aap saw ne Allah taala ka deedar bhi kiya hai aap kaise keh sakte hai ki ye sab jhoot hai are aapke saboot kya hai
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हुज़ूर ﷺ का अल्लाह त'आला को ना देखने की दलील का तहक़ीक़ी जायज़ा
ReplyDelete●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•● जमा'अत -ए- वहाबिया की ये सब से मजबूत दलील है जिसे हम पेश कर रहे है फिर इस पर कुछ कलाम होंगा इन्शाअल्लाह... हदीस :
हज़रते मसरूक़ रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायात है के उन्होंने उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयेशा सिद्दीका रदिअल्लाहु त'आला अन्हा से सुना के उन्होंने फरमाया ; "जो ये कहे के नबीए करीम ﷺ ने अल्लाह त'आला को देखा है वो झूटा है"। 📚 (सही बुखारी, जिल्द 3, किताब उत तौहीद, हदीस : 7380) इसी तरह की हदीस कुछ मुख्तलिफ अल्फ़ाज़ के साथ सही मुस्लिम में भी आई है (सही मुस्लिम, जिल्द 1, किताबुल ईमान, हदीस : 177)
यही वो हदीस है जिसे वहाबी हर जगह बयान करते है और लोगो से कहते है कि देखो हज़रते आयेशा उसे झूटा कहे रही है जो ये कहता है कि नबी ने अल्लाह का दीदार किया! तो आये इसी बुखारी शरीफ से एक और हदीस पढ़े जो हज़रते अनस रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने जो के एक सहाबी है उन्होंने एक तवील हदीस बयान की सफरे मेराज की उस हदीस का हम कुछ हिस्सा लिख रहे है। हदीस :
عن المروزي قلت لأحمد إنهم يقولون إن عائشة قالت من زعم أن محمدا رأى ربه فقد أعظم على الله الفرية فبأي شيء يدفع قولها قال بقول النبي صلى الله عليه وسلم رأيت ربي قول النبي صلى الله عليه وسلم أكبر من قولها
हज़रते अनस रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायात है पूरा मेराज का वाकिया बयान किया फिर कहेते है "हुज़ूर ﷺ सिदरतुल मुंतहा पर तशरीफ़ लाये और इज़्ज़त वाला जब्बार (अल्लाह) यहाँ तक करीब हुआ और नज़दीक आया के दो कमानो का या इस से भी कम का फासला रहे गया" 📚 (सही बुखारी, जिल्द 3, किताब उत तौहीद, हदीस 7517)
ख़ुलासा :
हज़रते मसरूक़ ताबई से रिवायात हदीस और हज़रते अनस सहाबी से रिवायत हदीस को देखे इन दोनों हदीसों को हम किस तरह समझे।
पॉइंट 1 : अव्वल तो जब ये वाकिया ए मेराज हुआ उम्मुल मोमिनीन आयेशा सिद्दीका की उम्र 4 या 6 बरस थी और वो नबी अलैहिस्सलाम के निकाह में भी ना आई थी तो इन्हें इस मस'अले का मुकम्मल इल्म ना था अगर बाद में उन्होंने ये बयान भी किया तो ये क़ौल ए उम्मुल मोमिनीन है जिस के बारे में अइम्मा फुकहा ने लिखा है के उम्मुल मोमिनीन जो ना देखने की बात कर रही है वो इस दुनिया मे रहते हुए है लेकिन हमारे नबी ﷺ ने अल्लाह को इस दुनिया मे नही बल्कि लामका में अपने माथे की आंखों से देखा।