फ़ितरा क्या है और कब देनी चाहिए

फ़ितरा दरअसल वो खाने पिने की चीज़ है जिसे हम रमजान के आखिर में ईद का चाँद देख कर मिस्कीनों ग़रीबों में तक्सीम कर देते हैं. ये हमारे रोज़े की खामियों,कमज़ोरियों को पुरे करने वाला एक अमल है और हर मुसलमान को चाहिए के वो  ईद-उल-फितर का चाँद देख कर फ़ितरा ज़रूर अदा करे.
फ़ितरा अदा करने का असल मक़सद है के ईद के रोज़ कोई भूका न रहे और कोई भीक न मांगे इसलिए ईद की नमाज़ अदा करने के पहले हमे फ़ित्र अदा कर देनी चाहिए.
रसूलल्लाह सल० अलैह० ने कहा के जिसने ईद की नमाज़ के बाद फ़ितरा अदा किया तो फिर वो फ़ितरा नहीं सदक़ा हुआ.
इसलिए फ़ितरा अदा करने का बेहतरीन वक्त ईद-उल- फितर का चाँद देखने के बाद और नमाज़ अदा करने से पहले का है और ये सुन्नत भी है.
बहुत से लोग रमजान शुरू होते ही फ़ितरा तक़सीम करना शुरू कर देते हैं हालांकि ये सही अमल नहीं है. अब चूँकि आबादी ज़्यादा है और फ़ितरा इतनी जल्दी,इतने काम वक्त में ज़रूरतमंदों को अदा नहीं किया जा सकता कि वो उन खाने पीने वाली चीज़ो को (मसलन खजूर,जौ, मुनक्का, चावल वगैरह) वक्त रहते इस्तेमाल कर सकें इसलिए बेहतर ये होगा के ये फ़ितरा हम 28 या 29 रमज़ान से तक़सीम करें जैसा के अब्दुल्लाह इबने उमर रज़ि० का मामूल था के वो 2-3 दिन पहले फ़ितरा तक़सीम करते थे.

एक और बात ग़ौर करने वाली है के हुज़ूर-ए-पाक सल० अलैह० से से साबित है के फ़ितरा खाने की शक्ल में दी जाने वाली चीज़ें होनी चाहिए न के रूपये-पैसे की शक्ल में, क्यूंकि जैसा के पहले बताया जा चूका है के फितरे का असल मक़सद यही है के ईद के रोज़ जब सभी खुशियां मनाएं और पेट भर के खाएं तो उस दिन कोई भीक न मांगे,कोई भूका न रहे.
फ़ितरे को पैसे की शक्ल में बहुत बहुत मजबूरी की सूरत में अदा करें जैसे के आप किसी ऐसी जगह पे हैं जहां कोई ऐसा ग़रीब नहीं जिसे खाने पीने की तकलीफ हो,तो फिर हमें जितना अनाज़ फितरे के तौर पे निकालने हैं हम उनके हिसाब से रकम किसी ग़रीब के पास भेज सकते हैं या अपने रिश्तेदारों को भेज कर उतनी रकम का अनाज़ खरीद कर वहां मिस्कीनों में तक्सीम करा सकते हैं.


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