नियत के बार में एक बात हम सभी जानते हैं के नियत दिल के इरादे का नाम है. अक्सर ही हम जब कोई काम करते हों तो हमारे दिल में इरादे होते हैं के हम आज ये करेंगे या हमे यहाँ जाना है वगैरह-वगैरह.
ठीक उसी तरह से जब हमे रोज़ा रखना होता है तो उसके लिए भी नियत करते हैं और नियत करनी ज़रूरी है क्यूंकि ये हदीस से भी साबित है के जब हम रोज़ा रखें तो नियत करें.
रोज़े का वक्त सुबह सादिक़ से शुरू होता है इसलिए ये ज़रूरी है के रोज़े की नियत सुबह सादिक़ से पहले करे.
अब ज़रा हम कुछ हदीसों पे गौर करें :
1. "अमल का दारोमदार नियत पर है और हर शख्स के लिए वही है जो वो नियत करता है."
(सहीह बुखारी Volume 7, Book 62, Number 8)
2. "जो शख्स तुलु--इ- आफताब से पहले नियत न करे,उसका रोज़ा नहीं."
(सुनन-अल निसाई Vol. 3, Book 22, Hadith 2334)
3. जो भी रात से रोज़े की नियत नहीं करता,उसका रोज़ा नहीं है."
(सुनन-अल निसाई Vol. 3, Book 22, Hadith 2336)
ऊपर की तमाम हदीसों से हमे यही पता चलता है के रोज़े की नियत बेहद ज़रूरी है और वो भी वक्त पे.
अब बात आती है के नियत कैसे करें.
नियत करने के लिए क्या हमे किसी अल्फाज़ को अदा करने की ज़रूरत है?
क्या नियत के लिए वाकई कोई दुआ है ?
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सबसे पहले तो जैसा के हम सभी जानते हैं के नियत दिल के इरादे का नाम है तो उसके लिए हमे अपनी जुबां से अलफ़ाज़ अदा करने की ज़रूरत नहीं है, क्यूंकि न तो किसी भी तरह के नियत को अल्फाज़ में बयां करने वाली कोई हदीस या क़ुरआनी आयत नहीं है. ठीक उसी तरह रोज़े की नियत करने वाली कोई दुआ हकीकतन किसी हदीस में मौजूद नहीं है जैसा के ज़्यादातर मुस्लमान रोज़े की नियत के लिए ये अलफ़ाज़ कहते हैं :
"बेसौमी गदन नवैतु मीन शहरे रमज़ान"
तर्जुमा : मैं रमजान के कल के रोज़े की नियत करता हूँ.
नोट: अरबी में गदन के माने कल (आने वाला) होता है
अब यहां पे कुछ बातें गौर करने वाली हैं
1. सबसे पहली बात के ऐसी कोई नियत की दुआ या अलफ़ाज़ हदीस या क़ुरआन से साबित नहीं है.
2. दूसरी बात जो खास कर हमे समझनी है वो ये के इस्लामिक कैलेंडर में दीनी ऐतबार से मग़रिब के बाद से तारीख बदल जाती है . तो इस तरह से शाम मग़रिब से फिर पूरी रात और पूरा दिन तक "आज" ही कहेंगे न के कल . तो जैसा के हम फजर के पहले सेहरी करते हैं और फिर ये कहते हैं के कल के रोज़े की नियत कर रहे हैं तो फिर क्या ये सही है, अगर ये मान भी लें के नियत करनी है तो फिर हमारी नियत कहा हुई क्यूंकि हम तो दुसरे दिन के रोज़े की नियत कर रहे हैं. अगर कुछ होशियार लोग ये दलील दें के दुनयावी कैलेंडर की बात हो रही है तो भी गलत है क्यूंकि सेहरी अक्सर 12 बजे के बाद की जाती है फिर नियत की जाती है और दुनियावी ऐतबार से भी वो रोज़ा उसी दिन का होता है न के आने वाले कल का.
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इसलिए हम सभी को चाहिए के ज़ुबान से नियत करने वाली बिदअत से बचें और दूसरों को भी इसके मुतल्लिक बताएं और उन्हें बिदअत करने से रोकें.
अल्लाह तबारक व तआला हम सबको राहे-रास्त पे चलाये और हम सबको क़ुरान-ओ-सुन्नत पे अमल करने की तौफीक अता फरमाए (आमीन)
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