रमज़ान की फ़ज़ीलत और रोज़े की अहमियत का जब भी ज़िक्र आता है तो इसके साथ लैलतुल क़दर का भी ज़िकर होता है.
शबे क़दर या लैलत-उल-कद्र रमज़ान की उन पांच ताक रातों में एक रात को कहा जाता है जिनके बारे में बहुत सी क़ुरआनी आयतें और हदीस हैं के इस रात की इबादत हज़ार महीने की इबादत से बेहतर है. ये वही रात है जिसमे अल्लाह तआला ने क़ुरआन को नाज़िल फ़रमाया.
जब हम शबे क़दर को पाएं तो हमे खूब इबादत और क़याम करनी चाइये क्यूंकि जैसा के बताया गया है के हज़ार महीने से बेहतर है तो ज़रा सोचिये के उस रात की इबादत कितनी अफ़ज़ल और मक़बूल होगी और वो शख्श सच में बदनसीब होगा जो इस रात को ईबादत न करे.
शबे क़दर के बारे में कुछ क़ुरआनी सूरतें और आयतें :
बेशक हमने इसे (क़ुरआन को ) शबे क़दर में नाज़िल किया. क्या तुम्हे मालूम है की शबे क़दर क्या है?
शबे क़दर हज़ार महीने से बेहतर है.इसमें फ़रिश्ते और रुहुल क़ुद्दूस उतरते हैं अपने परवरदिगार के हुक्म से हर काम के लिए .ये (रात) तुलु-ए-सुबह तक सलामती है.
(क़ुरआन 97,सुरह क़दर)
हामीम, कसम है किताबुं मुबीन की. बेशक हमने इसको एक मुबारक रात में नाज़िल फ़रमाया, बेशक हम खबरदार करने वाले हैं. इसी में सारे हिकमत वाले काम का फैसला किया जाता है.
(क़ुरआन 44, सुरह दुखान आयत 1-5)
जैसा की क़ुरआन की सूरतों से इस रात की फ़ज़ीलत का पता चलता है के ये बहुत ही बा-बरकत रात है जो हज़ार महीने से बेहतर है, और अल्लाह तबारक व तआला ने इसी लैलत-उल-क़दर में क़ुरआन नाज़िल किया.
अब शबे क़दर के बारे में हदीस पे गौर करें:
हज़रते आयशा रजि० से रिवायत है के हुज़ूरे पाक सल० अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "शबे क़दर को आखिरी दस रमजान के ताक रातों (21,23,25,27,29) में ढूंढो "
(सही बुखारी फ़ज़ाइल लैलतुल क़दर, हदीस 2017 )
उयैना बिन अब्दुर-रहमान ने कहा के मेरे वालिद ने मुझसे कहा था के शबे क़दर का तज़किरा अबु बकर की मौजूदगी में किया गया था.इसलिए उन्होंने कहा "मैं इसे (लैलतुल क़दर ) को सिर्फ रमज़ान के आखरी दस रातों में से तलाश करता हूँ जैसा की मैंने अल्लाह के रसूल से सुना था"
हक़ीक़तन मैंने उन्हें कहते सुना "इसे तलाश करो जब नौ बाकी रहे, या जब सात बाकी रहे या जब पांच या फिर आखरी के तीन रातों के दौरान ढूंढो"
(जामे अल-तिर्मिज़ी कितउल सौम हदीस 794)
क़ुरआन और हदीस के हवाले से जो हमारे सामने है वो ये की हमे शबे क़दर को 21,23,25,27,29 रमज़ान की रातों में तलाश करनी चाहिए क्यूंकि ये रमज़ान की ताक रातें हैं जिनका ज़िक्र मुहम्मदुररसूलल्लाह स० अलैह० ने किया है और जिन्हे सहाबा मानते आये हैं, हमे भी इन्ही ताक रातों में लैलतुल क़दर को ढूंढना है.
कुछ मौलवी मुल्ला ये भी मानते हैं के शबे क़दर सिर्फ 27 रमज़ान की रात को है ,हालाँकि इसका कही कोई सुबूत नहीं मिलता के शबे क़दर २७ रमजान को ही है. अगर ऐसा होता तो फिर अल्लाह के रसूल हमे ताक रातों में ढूंढने के लिए क्यों कहते, जबकि हदीस से साफ़ ज़ाहिर है के शबे क़दर को ताक रातों में ढूंढा जाए.
सोचने वाली बात है के जिस रात का पता हमारे प्यारे रसूल सल० अलैहि० ने नहीं बताया सहाबा-ए-कराम ने नहीं बताया, तबो-ताबइन ने नहीं बताया, बल्कि उन्होंने बस आखरी अशरे की ताक रातों में ढूंढने की इत्तेला दी
मगर आज के कुछ मुल्लाओं ने फ़ौरन से बता दिया के 27 की शब (रात) ही शबे क़दर है इसलिए हमे इस बात का खास ख्याल रखने चाहिए के सिर्फ एक रात को जग कर ईबादत करें और फिर ये सोचे के बस यही शबे क़दर था तो फिर ये गलत है बल्कि हमे तमाम ताक रातों को जगना चाहिए और खुूब ईबादत करनी चाहिए
अल्लाह हम सबको राहे हक़ पे चलने की तौफ़ीक़ आता फरमाए. (आमीन)
Mohammad A manihar
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