तावीज़ क्या है ?
किसी बीमारी से बचने के लिए या कुछ खास हासिल करने की ग़रज़ से गले या बदन के किसी हिस्से में लटकाए जाने वाली शय को ही तावीज़ कहते हैं.इसको तमीमा भी कहते हैं. तावीज़ लटकाने वालों का अक़ीदा ये होता है के उस से उनकी सारी बलाएँ दूर हो जाती हैं, बदन को ताकत नसीब होती हैं और जिस मकसद के तहत उनको पहना जाता है वो मक़सद पूरा होता है. इन बातों में कहा तक सच्चाई है और तावीज़ बांधना कहा तक शरई ऐतबार से जायज़ है?
आप कह दो के मेरे लिए अल्लाह ही काफी है और भरोसा करने वाले उसी (अल्लाह) पे भरोसा करते हैं.
(सौराह जुमर, आयत नंबर 38)
और अगर अल्लाह तुम्हे कोई तकलीफ पहुचाये तो उसके सिवा उसको कोई दूर करने वाला नहीं और अगर कोई भलाई करनी चाहे तो उसके फज़ल को कोई रोकने वाला नहीं. वह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है फायदा पहुंचता है और वह बख्शने वाला मेहरबान है.
(सुरह यूनुस आयत 107)
और इनमे से ज़्यादातर लोग अल्लाह पे ईमान लाने के बावजूद भी शिर्क करते हैं
(सुरह युसूफ आयत 106)
रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने फ़रमाया "जिस ने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया"
(मसनद-ए-अहमद ,ह:154/4,हाकिम ,ह:219/4,सिलसिला सहीह,ह:492)
मुहम्मदुर रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने फ़रमाया "जिसने तावीज़ लटकाया अल्लाह उसकी मुराद पूरी न करे"
(मसनद-ए-अहमद ,ह:4/15,हाकिम ,ह:4/21)
एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल० अलैहि० फरमाते हैं के "जिसने कोई भी चीज़ लटकाई उसे उसी में सुपुर्द कर दिया जायेगा"
(तिर्मिज़ी,ह:2/208,हाकिम,H:4/216)
तावीज़ के शिर्क वाली हदीस ज़रा तफ्सील से देखते हैं:
हज़रात उक़्बा बिन आमिर अल-हजनी से रिवायत है की रसूलल्लाह सल० अलैहि० की खिदमत में एक जमात हाज़िर हुई. अल्लाह के रसूल स० ने 9 लोगों से बैत ली और एक को बैत लेने से रोक दिया. उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह आपने 9 आदमियों की बैत ली और इस आदमी की बैत नहीं ली , आपने फ़रमाया इस से इसलिए बैत नहीं ली क्यूंकि उसने तावीज़ पहना हुआ है. इसलिए आपने हाथ बढ़ा कर उस तावीज़ को काट दिया और फिर उस शख्स से बैत ली फिर इरशाद फ़रमाया "जिसने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया"
(मुसनद अहमद, सिलसिला अहादीस ए सहिया हदीस 492)
हज़रते इमरान बिन हसन रजि० से रिवायत है के नबी-ए- करीम ने एक आदमी के हाथ में पीतल का एक छल्ला (कड़ा) देखा तो आपने पूछा "ये क्या है?"
उसने कहा "ये कमज़ोरी को दूर करने के लिए है"
आपने फ़रमाया की इसे उतार कर फेंक दो , ये तेरी कमज़ोरी में मजीद इज़ाफ़ा करेगा और अगर तू इसे पहने हुए मर गया तो तू कभी कामयाब नहीं हो सकता"
(मसनद अहमद)
इन तमाम क़ुरआनी और हदीसी बातों से हमे यही जानकारी मिली के तावीज़ या कोई भी चीज़ मसलन कड़ा , सीप लटकाना, कल धागा लटकना.....ये सोच कर पहनना के इस से हमे ग़ैब से किसी तरह का फायदा होगा तो फिर हमारी भूल है क्यूंकि ये सरासर शिर्क है और हम सभी जानते हैं के शिर्क ऐसा गुनाह है जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं करता है.
.
अगर आप तावीज़ की दूकान लगाए मुल्लाओं के पास जायेंगे तावीज़ की शरई हकीकत पूछेंगे तो वो आपको मुतमईन करने के लिए एक हदीस का हवाला देंगे जो के सही नहीं है. हदीस निचे दी गयी है:
हज़रते उमरू बिन शोएब अपने वालिद से और वह अपने वालिद से रिवायत करते हैं के रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने हमे चार कलिमात सिखाए जो हम खौफ और वहशत की वजह से सोते वक्त पढ़ते थे,
हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर अपने बालिग़ बच्चों को सोते वक्त इन कलिमात को पढ़ने की तलक़ीन करते थे और जो कमसिन बच्चे उनको याद नहीं कर पाते थे उनके गले में उन कलिमात का तावीज़ लिख कर डाल देते.
(मसनद अहमद जिल्द 2 सफहा नंबर 181)
मगर ये हदीस है सही हदीस नहीं है क्यूंकि इसका रावी (हदीस बयान करने वाला) उमरू बिन शोएब ऐसा इंसान है के जिसपे तमाम अइम्मा ने तन्क़ीद की है और उसे ग़लत कहा है.
(तहज़ीब जिल्द 9 सफा 31 मीजन जिल्द 3 सफा 12)
इस रावी के बारे में सलमान तमामी कहते हैं के कजजाब (झूट बोलने वाला) है, हशाम बिन अरवा कहते हैं वो कजजाब है, यहया कत्तान कहते हैं के इस बात की गवाही देता हूँ के वो कजजाब है.
(मिजानुल एतदाल जिल्द ,सफा नंबर 12)
अगर चलें हम उन मुल्लाओं के शोर करने पे ये मान भी लें के हदीस सही है तो इसमें रसूलल्लाह ने कहाँ कहा के तावीज़ लटकाओ, ये फेल तो अब्दुल्लाह बिन उम्र का है जिसमे रसूलल्लाह का ज़िकर ही नहीं. हदीस तो बस यही पे ख़त्म हो गयी के आपने खौफ-ओ-दहशत से बचने की दुआ सिखाई, ठीक वैसे ही जैसे अल्लाह ने अपनी किताब क़ुरआन-ए-पाक को हिदायत के लिए नाज़िल किया और हम उसे बजाये नसीहत हासिल करने के, गले में लटका ले.
अगर ये हदीस सही है तो क्या ये मुमकिन है के एक तरह ऐसी हदीस भी हो के जिस से एक शख्स के तावीज़ लटकाने का ज़िक्र मिल जाए और बाकी हदीसों में अल्लाह के रसूल तावीज़ लटकाने से मन फरमा रहे हैं. ये मुमकिन नहीं है क्यूंकि किसी भी हदीस में कही भी आपने तावीज़ को सही नहीं कहा बल्कि इसे शिर्क कहा है और दूर रहने की ताकद की है.
हाँ जहाँ तक दम करने का सवाल है तो जायज़ तरीके से दम करना सही है, मतलब क़ुरआनी आयतें पढ़ कर दम करना या ऐसे कलिमात जो शिर्किया न हों उससे हम दम कर सकते हैं और ये साबित है.
अल्लाह हम सबको नेक रास्ते पे चलने की तौफ़ीक़ आता फरमाए (आमीन)
किसी बीमारी से बचने के लिए या कुछ खास हासिल करने की ग़रज़ से गले या बदन के किसी हिस्से में लटकाए जाने वाली शय को ही तावीज़ कहते हैं.इसको तमीमा भी कहते हैं. तावीज़ लटकाने वालों का अक़ीदा ये होता है के उस से उनकी सारी बलाएँ दूर हो जाती हैं, बदन को ताकत नसीब होती हैं और जिस मकसद के तहत उनको पहना जाता है वो मक़सद पूरा होता है. इन बातों में कहा तक सच्चाई है और तावीज़ बांधना कहा तक शरई ऐतबार से जायज़ है?
आप कह दो के मेरे लिए अल्लाह ही काफी है और भरोसा करने वाले उसी (अल्लाह) पे भरोसा करते हैं.
(सौराह जुमर, आयत नंबर 38)
और अगर अल्लाह तुम्हे कोई तकलीफ पहुचाये तो उसके सिवा उसको कोई दूर करने वाला नहीं और अगर कोई भलाई करनी चाहे तो उसके फज़ल को कोई रोकने वाला नहीं. वह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है फायदा पहुंचता है और वह बख्शने वाला मेहरबान है.
(सुरह यूनुस आयत 107)
और इनमे से ज़्यादातर लोग अल्लाह पे ईमान लाने के बावजूद भी शिर्क करते हैं
(सुरह युसूफ आयत 106)
रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने फ़रमाया "जिस ने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया"
(मसनद-ए-अहमद ,ह:154/4,हाकिम ,ह:219/4,सिलसिला सहीह,ह:492)
मुहम्मदुर रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने फ़रमाया "जिसने तावीज़ लटकाया अल्लाह उसकी मुराद पूरी न करे"
(मसनद-ए-अहमद ,ह:4/15,हाकिम ,ह:4/21)
एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल० अलैहि० फरमाते हैं के "जिसने कोई भी चीज़ लटकाई उसे उसी में सुपुर्द कर दिया जायेगा"
(तिर्मिज़ी,ह:2/208,हाकिम,H:4/216)
तावीज़ के शिर्क वाली हदीस ज़रा तफ्सील से देखते हैं:
हज़रात उक़्बा बिन आमिर अल-हजनी से रिवायत है की रसूलल्लाह सल० अलैहि० की खिदमत में एक जमात हाज़िर हुई. अल्लाह के रसूल स० ने 9 लोगों से बैत ली और एक को बैत लेने से रोक दिया. उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह आपने 9 आदमियों की बैत ली और इस आदमी की बैत नहीं ली , आपने फ़रमाया इस से इसलिए बैत नहीं ली क्यूंकि उसने तावीज़ पहना हुआ है. इसलिए आपने हाथ बढ़ा कर उस तावीज़ को काट दिया और फिर उस शख्स से बैत ली फिर इरशाद फ़रमाया "जिसने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया"
(मुसनद अहमद, सिलसिला अहादीस ए सहिया हदीस 492)
हज़रते इमरान बिन हसन रजि० से रिवायत है के नबी-ए- करीम ने एक आदमी के हाथ में पीतल का एक छल्ला (कड़ा) देखा तो आपने पूछा "ये क्या है?"
उसने कहा "ये कमज़ोरी को दूर करने के लिए है"
आपने फ़रमाया की इसे उतार कर फेंक दो , ये तेरी कमज़ोरी में मजीद इज़ाफ़ा करेगा और अगर तू इसे पहने हुए मर गया तो तू कभी कामयाब नहीं हो सकता"
(मसनद अहमद)
इन तमाम क़ुरआनी और हदीसी बातों से हमे यही जानकारी मिली के तावीज़ या कोई भी चीज़ मसलन कड़ा , सीप लटकाना, कल धागा लटकना.....ये सोच कर पहनना के इस से हमे ग़ैब से किसी तरह का फायदा होगा तो फिर हमारी भूल है क्यूंकि ये सरासर शिर्क है और हम सभी जानते हैं के शिर्क ऐसा गुनाह है जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं करता है.
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अगर आप तावीज़ की दूकान लगाए मुल्लाओं के पास जायेंगे तावीज़ की शरई हकीकत पूछेंगे तो वो आपको मुतमईन करने के लिए एक हदीस का हवाला देंगे जो के सही नहीं है. हदीस निचे दी गयी है:
हज़रते उमरू बिन शोएब अपने वालिद से और वह अपने वालिद से रिवायत करते हैं के रसूलल्लाह सल० अलैहि० ने हमे चार कलिमात सिखाए जो हम खौफ और वहशत की वजह से सोते वक्त पढ़ते थे,
हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर अपने बालिग़ बच्चों को सोते वक्त इन कलिमात को पढ़ने की तलक़ीन करते थे और जो कमसिन बच्चे उनको याद नहीं कर पाते थे उनके गले में उन कलिमात का तावीज़ लिख कर डाल देते.
(मसनद अहमद जिल्द 2 सफहा नंबर 181)
मगर ये हदीस है सही हदीस नहीं है क्यूंकि इसका रावी (हदीस बयान करने वाला) उमरू बिन शोएब ऐसा इंसान है के जिसपे तमाम अइम्मा ने तन्क़ीद की है और उसे ग़लत कहा है.
(तहज़ीब जिल्द 9 सफा 31 मीजन जिल्द 3 सफा 12)
इस रावी के बारे में सलमान तमामी कहते हैं के कजजाब (झूट बोलने वाला) है, हशाम बिन अरवा कहते हैं वो कजजाब है, यहया कत्तान कहते हैं के इस बात की गवाही देता हूँ के वो कजजाब है.
(मिजानुल एतदाल जिल्द ,सफा नंबर 12)
अगर चलें हम उन मुल्लाओं के शोर करने पे ये मान भी लें के हदीस सही है तो इसमें रसूलल्लाह ने कहाँ कहा के तावीज़ लटकाओ, ये फेल तो अब्दुल्लाह बिन उम्र का है जिसमे रसूलल्लाह का ज़िकर ही नहीं. हदीस तो बस यही पे ख़त्म हो गयी के आपने खौफ-ओ-दहशत से बचने की दुआ सिखाई, ठीक वैसे ही जैसे अल्लाह ने अपनी किताब क़ुरआन-ए-पाक को हिदायत के लिए नाज़िल किया और हम उसे बजाये नसीहत हासिल करने के, गले में लटका ले.
अगर ये हदीस सही है तो क्या ये मुमकिन है के एक तरह ऐसी हदीस भी हो के जिस से एक शख्स के तावीज़ लटकाने का ज़िक्र मिल जाए और बाकी हदीसों में अल्लाह के रसूल तावीज़ लटकाने से मन फरमा रहे हैं. ये मुमकिन नहीं है क्यूंकि किसी भी हदीस में कही भी आपने तावीज़ को सही नहीं कहा बल्कि इसे शिर्क कहा है और दूर रहने की ताकद की है.
हाँ जहाँ तक दम करने का सवाल है तो जायज़ तरीके से दम करना सही है, मतलब क़ुरआनी आयतें पढ़ कर दम करना या ऐसे कलिमात जो शिर्किया न हों उससे हम दम कर सकते हैं और ये साबित है.
अल्लाह हम सबको नेक रास्ते पे चलने की तौफ़ीक़ आता फरमाए (आमीन)
Wo gairullah ke name ka taweez pehna hoga. Deobandiyo ke kitabo me bhi taweez hai.
ReplyDeleteOr tmhari?
DeleteAAP KI AQL EDI ME HAI
ReplyDeleteMasha Allah, bikul saaf saaf explanation de diya gya quraan aur sahi hadis ke jariye se. Fir bhi koi gumrahi me dube rahna chahta hai to dube rahe yahan tak ke usi gumrahi me dube dube uski maut aajayega, lekin ye nahi samjhenge, hidayat wahi pata hai jo hidayat ke liye talabgar ho aur sach ko janne ke liye tahqeeq ka jajba ho.
ReplyDeleteMashallah... Very useful for all of us... Zazakallah
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